⪢ शरीरमें जितने वात रोग होते है, सभी पर वायु मुद्रा उत्तम कार्य करती है। (सायटिका, स्पाँडिलायटिस, घुटने व गर्दन दर्द, पॅरॅलिसिस, आदि).
⪢ पाचन के बाद और प्राय: विभिन्न स्थितीमें वायु की जो उत्पत्ती होती रहती है।
⪢ आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर में 49 वायु हैं जिनमें से 5 महत्वपूर्ण और 5 गौण हैं। उन सभी के विभिन्न विशेष कार्य हैं।
⪢ वायु मुद्रा शरीर में वायु तत्व को संतुलित करने के लिए जानी जाती है।
⪢ शिर पर हावि हो चुके डिप्रेशन, तनाव, स्ट्रेस को यह मुद्रा दूर करके एनर्जी को संतुलित करती है।
⪢ मायग्रेन, सायनस, आँखोकी थकान में बहुत ही लाभदायी यह मुद्रा है।
⪢ महाशीर्ष मुद्रा सर्वाइकल, अपच, मौसम परिवर्तन, कमर दर्द और मासिक धर्म सहित किसी भी कारण से होने वाले सिरदर्द में लाभकारी है।
⪢ 10 मिनिट दिनमें तीन बार करे।
⪢ यह वरुण या जलवर्धक मुद्रा शरीर में जल तत्व को बढ़ावा देने में मदद करती है।
⪢ ड्राई स्किन, बाल, आंखें, एग्जिमा, पाचन तंत्र की सभी समस्याओं को दूर करती है।
⪢ जोड़ों का दर्द, आर्थराइटिस, शरीर से दुर्गंध निकलना और स्वाद न आने की समस्या में मदद करती है।
⪢ हार्मोन की कमी होने या डिहाइड्रेशन की समस्या होने पर राहत देती है।
⪢ काफी समय तक इस मुद्रा को करते रहे। दिमाग में शांती तथा एकाग्रता में बढोतरी होती है।
⪢ यह मुद्रा आज्ञा चक्र को उत्तेजित करती है और बुद्धी एवं मनकी शक्ती को बढाती है।
⪢ किसी भी शारिरीक बीमारी से उभरने के लिए इस मुद्रा का प्रयोग करते रहे।
⪢ शरीर में मौजूद अशुद्धियों को डिटॉक्स करता है।
⪢ कब्ज और पाचन संबंधी समस्या वाले लोगों के लिए विशेष लाभदायक।
⪢ शरीर में आकाश तत्व को बढ़ाता है।
⪢ दिमाग में आने वाले बुरे विचारों से राहत देता है।
⪢ भय, दुख और क्रोध की भावनाओं को नियंत्रित करता है।
⪢ कान और सीने से जुड़ी समस्याओं में भी लाभदायक।